भागना भी है और ठहराना भी

या तो भागते रहो

या ठहर जाओ

दोनों बातें एक

ही वक्त नहीं हो सकतीं

हाँ एक काल्पनिक उपाय है

भागते हुए ही

कल्पना करो कि

ठहरे हुए हो

आदमी धर्म को

अपने जीवन में कुछ इसीतरह

अपना रहा है

............................................ अरुण

Comments

Udan Tashtari said…
बेहतरीन!

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