कबीर रहस्यवादी नहीं हैं

सीधा सादा जगत है, सीधे सीधे देख

तिरछी को तिरछा दिखे, दिखती तिरछी रेख

सीधा सादा आदमी

अपनी सीधी नजर से

जगत को सीधे सीधे देखता है

पर उसकी बानी रहस्य

मालूम पड़ती है उनको

जो जगत को सीधे सीधे

देख नहीं सकते क्योंकि

उनकी नजर तिरछी है

संस्कारित है

कबीर रहस्यवादी नहीं हैं

न उनकी बानी किसी रहस्य

को दर्शा रही है

हम उन्हें समझ नहीं पा रहे

क्योंकि नजर हमारी

सीधी नहीं है.

........................................... अरुण


Comments

ZEAL said…
तिरछी को तिरछा दिखे, दिखती तिरछी रेख ..

majority of the people are like this..jab kuchh jalebi ki tarah dikhta hai unhe.

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