विचारों की फलती लहरें

अबाध गति से बहती नदी की लहरें
अचानक फल उठती हैं और पौधे बन जाती हैं,
ऐसा अगर संभव हो जाए तो नदी का प्रवाह
टूट कर बिखर जाएगा,
हमारी सारी मानसिक चेतना या उर्जा
उसमें उगते फलते विचारों के कारण
इसी तरह टूट कर बिखरती है,
इन विचारों से तादात्म हटते ही
तन-मन का उर्जा प्रवाह पुनः सजीव हो उठेगा
.............................................. अरुण

Comments

मानसिक चेतना इसमें उठते विचोरों के प्रवाह से बाधित होती है ...
भीतर शून्य हो , मौन हो ...
बाहरी कोलाहलों से कुछ फर्क नहीं पड़ता ...
आध्यात्मिक कविता के लिए आभार ..!!

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के