मन की तरंग

जमीं परछाईयाँ
बुद्ध उभरतें हैं, ठहरतें हैं, चलें जातें हैं
उनकी परछाईयों को जमा देतें हैं
उनके अपने
और उन्ही जमी परछाईयों को समझ लेते हैं
धर्म अपना
..................
अक्षरभरा चित्त
कोरे कागज पर लिखा जानेवाला हरेक अक्षर
कागज के कोरेपन को भ्रष्ट करता है
परन्तु कागज और अक्षर के बीच के खालीपन को
जो देखने की कला जानता हैं
वह स्वयं कोरा है, निर्मल है, निर्मन है
................................................... अरुण

Comments

Udan Tashtari said…
बहुत बढ़िया!

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