मन की तरंग

भीड़ हूँ मै ......
भीड़ हूँ मै, जानता हूँ -भीड़ होना
खो चुका पूरी तरह से खुद का होना
बन चुकी है खुद की मेरी ऐसी सूरत
जो हो रिश्तों का हो पेचीदा सा जाला
जिसने अपनी असली काया को छुपाया
भय दबाया अपने भीतर
गिर न जाऊं अब कहीं मै भीड़ की गहरी पकड़ से
भीड़ के इतिहास से, अनुराग से, अनुबंध से
.......................................................... अरुण

Comments

Udan Tashtari said…
बहुत बढ़िया!

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