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Showing posts from March, 2010

मन की तरंग

परम-वास्तव सभी वास्तविकताओं को जानना तथ्य को जानना है वास्तविकताओं की परम वास्तविकता को समझ के भीतर उतारना सत्य से साक्षात्कार है ............. संख्या का जन्म संख्याएँ केवल दो ही हैं - 'उपस्थिति' एवं 'अनुपस्थिति' 'होना' एवं 'न होना' 'होंने' की गणना से संख्या की संकल्पना पैदा हुई ....................... प्रज्ञान वास्तव एवं कल्पना का मिश्रण है यह संसार इस मिश्रण से वास्तव एवं कल्पना को (अपनी समझ में) अलग अलग कर देख लेने को प्रज्ञान कहते हैं मिश्रण में ही रम जाने को अज्ञान कह सकते हैं .................................................................... अरुण

मन की तरंग

सर्वव्यापी हर जगह व्याप्त है भगवान, मंदिर में, मस्जिद में, घर में, बाजार में, मुझमें, तुझमें, सबमें इतना ही नही वह स्वयं के भीतर भी है और बाहर भी ................. मन का स्वाद जगत तो निस्वाद है, स्वाद है कहीं तो वह है हमारे मन में, जगत तो आनंद है परन्तु सुख दुख है निर्मिती हमारे मन की ...................... समझ अपनी ना समझी को ध्यानपूर्वक देख लेना ही समझ है - इसी को ज्ञान कहें ............................................................... अरुण

मन की तरंग

आज से कुछ दिनों तक अपनी पुरानी डायरी से चुनी रचनाएँ ब्लॉग पर रख रहा हूँ . देखिये भाती हैं या नही अंतर्ज्ञान ज्ञान से दृष्टिकोण बदलतें हैं अंतर्ज्ञान से दृष्टि ही बदलती है ...................... जागना जागना हो तो जगत की हर चीज पर जागो सोना है तो विचारों से भी सो जाओ अहंकार क्या है हवा पर खिंचीं है हवा की लकीरें ये मुद्दत गंवायीं मगर मिट न पाई नजर भर के देखो ये सारा तमाशा ये किसने बनाई और किसने मिटाई .............................................. अरुण

आज का शेर

चलती हुई है जिंदगी, मौत रुकने को कहें जिन्दा है भगवान इक नदी की तरह ............................................. अरुण

आज का शेर

खुला जहन हो, दबी आड़ में कितनी बातें जागा वही के जिसने मुकम्मल देखा .............................. ................... अरुण

आज का शेर

है जिन्दा कायनात ये, खुदा का है वजूद खुदा नही खुदा जो किसी शक्ल में ढले .............................. ...................... अरुण

आज का शेर

जिस्म में साँस, आस साथ में दुनिया के बवाल एक ही वक्त कई जगहों पे इन्सान जिए ................................................. अरुण

बड़े अंतराल के बाद

यहाँ पाना कुछ नही बस खोना है जो मिला यहाँ आकर उसे ढोना है उस गठड़ी की तरह जो कभी थी ही नही लगता रहा कि '' है " -यही रोना है .............................................. अरुण