आज के ताजे शेर

जो भी होता ठीक ही है इस जहाँ में
अच्छा बुरा तो आदमी का इक हिसाब
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जेहनी कोशिशें जेहन से पार जाने की
साहिल पे खड़े दरिया में तैरने जैसा
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अँधेरा देख लेना, मुकम्मल देख लेना एक ही पल में
इसी को जागने की इंतिहा कहते है
............................................................. अरुण

Comments

Udan Tashtari said…
कभी गज़ल पूरी कहें..

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