तीन दोहे

जो पलड़े में बैठता तुलता है दिन रात
खुद का बोझा छोड़ते राजी हो हर बात
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लोभ कृत्य या त्यागना दोनों चित्त मलीन
गर विचलन मन का हुआ, लोभ त्याग आधीन
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दावा करने से महज, कैसे कोई माने
जो दिखला दे तैर कर, तरन-कला वो जाने
....................................................... अरुण

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