कौन से तोहफे सजा के लावूं मै

खुली राहों में सिसकती हुई रातों के सिवा
मै तुम्हे कौन से तोहफे सजा के लावूं मै

मेरे जीवन में कहीं ख्वाब का सिंगार नही
मेरी रातों में पला दर्द है बहार नही
मेरी डूबी हुई हसरत को सिवा रोने के
किसी रंगीन किनारे से सरोकार नही

घने जंगल में सुलगती हुई शाखों के सिवा
मै तुम्हे कौन से तोहफे सजा के लावूं मै

मेरी आँखों में बसे अश्क बसी चाह नही
मै अकेला हूँ मेरा कोई हमराह नही
मेरी नाकाम उमंगो को सिवा रोने के
गम हटाने की मिली और कोई राह नही

गम के बोझ से दबती हुई सांसों के सिवा
मै तुम्हे कौन से तोहफे सजा के लावूं मै
.............................................. अरुण

Comments

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के