तीन पंक्तियों में संवाद

हंसते रोते सब तजुर्बे काम आये
सब में 'मै' ने ढूंढ़ ली अपनी महत्ता

राख में भी उठ खड़ा होता है 'मै'
....................
'छोड़ अपने मोह'- ये सीख पूरी भा गई
कैसे छोड़े मोह इसकी फिक्र जारी हो गई

अब नया सवाल- 'इस फिक्र से कैसे बचूं ?'
......................
जाना नही सगे को बरसों से साथ रहते
वह अपनी सोचता था, मै अपने में ही खोया

'कौन रोता है किसी और के खातिर ऐ दोस्त...'
............................................................... अरुण

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