तीन पंक्तियों में संवाद

एक गाँधी ने दिलाई एक आजादी
अब उसे मिल बाँटते हैं कई गाँधी

'अनशन.. परिस्थिति विकराल.. तेलंगना स्वीकार'
...........
सच नहीं कोशिश कुई, साहस है पूरा एक
सच ने उसको थामना जो झूठ से लेता छलांग

कोशिश असत्य से टूटने की हो, सत्य से तो जुड़े ही हैं
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भोर,सुबह, दोपहर और शाम क्या?
रात क्या?- बढ़ते घटते सूर्य के परिणाम ये

बातें परस्पर विरोधी नहीं - डिग्री का फर्क है
.............................................. अरुण

Comments

Udan Tashtari said…
सटीक पंक्तियाँ.

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