कुछ शेर

कई अच्छे बुरे सपने, कई अरमान चुप चुप से
गुनाहों की दबी सी बू, जहन है ऐसा तहखाना

यादों पे धूल यादों की चढ़ती गई
शख्सियत अपने आप ढलती गई
........................................ अरुण

Comments

''गुनाहों की दबी सी बू, जहन है ऐसा तहखाना ''
durust pharmaya
Udan Tashtari said…
भुलाये उनके हमसफरी के वादे सभी
जिन्दगी खुद ब खुद ही चलती गई!!!


-बहुत खूब!!

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