कुछ शेर

हटा जब मोह बाहर का, खुले इक द्वार भीतर में
पुकारे खोज को कहकर- यहाँ से बढ़, यहाँ से बढ़

भरी ज्वानी में जिसको जानना हो मौत का बरहक*
उसी को सत्य जीवन का समझना हो सके आसाँ

जिसम पूरी तरह से जानने पर रूह खिलती है
'कंवल खिलता है कीचड में' - कहावत का यही मतलब

ख़याल भरी आँखों से मै दुनिया देखूं
दुनिया दिखे ख़यालों जैसी

अँधेरे से नहीं बैर रौशनी का कुई
दोनों मिलते हैं तो रौनक सी पसर जाती है

बरहक = सत्य, * सिद्धार्थ (भगवान बुद्ध) के बारे में
................................................................... अरुण

Comments

Udan Tashtari said…
अँधेरे से नहीं बैर रौशनी का कुई
दोनों मिलते हैं तो रौनक सी पसर जाती है


-बहुत सही!!

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