एक गजल, कुछ शेर

किसने जाना था बदल जाएगा ये वक्त का नूर
छोड़ के जाना पड़ेगा तेरी सोहबत का सुरूर

चन्द लम्हों की मुलाकात का जादू कैसा
जिंदगीभर उन्ही लम्हों का किया करते गुरुर

इश्क में जारी रहे सिलसिला गुनाहों का
ये अहम बात नहीं किसने किया पहला कसूर

दिन गुजरते हैं तो यूँ घाव भी भर जाते हैं
फिर भी रह जाते हैं हर हल में कुछ दाग जरूर

वक्त के साथ बदलनी है तो बदले हर बात
जो गई बीत उसे कौन बदल पाए हुजुर
....................................................... अरुण
कुछ शेर
हवा ओ आग पानी और धरती आसमां सारे
मै हूँ चौराहा जहाँ से सब गुजरते हैं

दुनिया है खेल जिसमें जीता नहीं कोई
देखी है हार सब ने अपनी अपनी

जंगे जहन का शोर बाहर भी फैलता
जंग थम जाए तो बाहर भी सुकून
.............................................. अरुण

Comments

M VERMA said…
दिन गुजरते हैं तो यूँ घाव भी भर जाते हैं
फिर भी रह जाते हैं हर हल में कुछ दाग जरूर
और फिर यही दाग उन घावों को जिन्दा रखते हैं

बेहतरीन रचना
Udan Tashtari said…
जंगे जहन का शोर बाहर भी फैलता
जंग थम जाए तो बाहर भी सुकून

--बहुत उम्दा!!
इश्क में जारी रहे सिलसिला गुनाहों का
ये अहम बात नहीं किसने किया पहला कसूर

Bahut sundar !
mehek said…
चन्द लम्हों की मुलाकात का जादू कैसा
जिंदगीभर उन्ही लम्हों का किया करते गुरुर

इश्क में जारी रहे सिलसिला गुनाहों का
ये अहम बात नहीं किसने किया पहला कसूर

waah behtarin
सदा said…
वक्त के साथ बदलनी है तो बदले हर बात
जो गई बीत उसे कौन बदल पाए हुजुर

बहुत ही सुन्‍दर पंक्तियां, लाजवाब प्रस्‍तुति, आभार ।

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