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Showing posts from November, 2009

एक रूमानी ख़याल

यूँ ही बाँहों में सम्हालो कि सहर होने तक धडकनें दिल की उलझ जाएँ गुफ्तगुं कर लें जुबां से कुछ न कहें रूह भरी आँखों में डूबकर वक्त को खामोश बेअसर कर लें जुनूने इश्क में बेहोश और गरम सांसे फजा की छाँव में अपनी जवां महक भर लें बेखुदी रात की तनहाइयों से यूं लिपटे बेखतर दिल हो, सुबह हो तो बेखबर कर लें ..................................... अरुण

दो शेर

अच्छों से और बुरों से दोनों से करे संग कोई भी रंग आसमाँ पे चढ़ता नहीं उलझना हो दुनिया में तो ऐसे उलझो जैसे कि परिंदों से आसमाँ उलझे .......................................... अरुण

एक सवाल भगवान से ...

मालूम न था भगवान इतने बेरहम होगे.. मौत का बख्शीस एक मासूम को दोगे? ऊबनेवालों को जीने का जहर दोगे जिंदगी में खेलने वाला उठा लोगे? शाख से गिरकर जो माटी चूमना चाहे उस लुड्कते फूल को तुम उम्र दे दोगे शाख पे खिलकर जो मौसम को सजा देगी उस कली को तोड़ माटी में मिला दोगे? दुआ करते हो सुनते हैं क्या दुआ दोगे किसीको जिंदगी देकर तुरत ही मौत दे दोगे? तो आखिर कबतलक मनहूस रोती जिंदगी दोगे मौत के डर से सिहरती जिंदगी दोगे? ................................................. अरुण

कुछ शेर

खुद में ही डूब जाए खुद ही से हस पड़े मस्ती भरा है उसको पागल न जानना घाव ढक दे ऐसा मरहम, घाव भर दे ऐसा मरहम कौनसा तेरे लिए खुद फैसला करना जीता हूँ जिंदगी मै चेहरे बदल बदल कर असली शकल का मुझको कोई पता नहीं .................................................. अरुण

कुछ शेर

हटा जब मोह बाहर का, खुले इक द्वार भीतर में पुकारे खोज को कहकर- यहाँ से बढ़, यहाँ से बढ़ भरी ज्वानी में जिसको जानना हो मौत का बरहक* उसी को सत्य जीवन का समझना हो सके आसाँ जिसम पूरी तरह से जानने पर रूह खिलती है 'कंवल खिलता है कीचड में' - कहावत का यही मतलब ख़याल भरी आँखों से मै दुनिया देखूं दुनिया दिखे ख़यालों जैसी अँधेरे से नहीं बैर रौशनी का कुई दोनों मिलते हैं तो रौनक सी पसर जाती है बरहक = सत्य, * सिद्धार्थ (भगवान बुद्ध) के बारे में ................................................................... अरुण

कुछ शेर

कुछ शेर

उसी की खोज सही जो कि नहीं पास अरुण अपनी सांसो को, धडकनों को, खोजते न फिरो लिखाकर नाम तख्तियों पे, दावे नहीं करते ये तो तख्तियां हैं - नाम बदलती रहती हैं चाँद पे पांव धरा तो लगा हसरत पूरी बंदा बेसब्र अब, करता वहाँ पानी की तलाश ........................................................अरुण

एक गजल, कुछ शेर

किसने जाना था बदल जाएगा ये वक्त का नूर छोड़ के जाना पड़ेगा तेरी सोहबत का सुरूर चन्द लम्हों की मुलाकात का जादू कैसा जिंदगीभर उन्ही लम्हों का किया करते गुरुर इश्क में जारी रहे सिलसिला गुनाहों का ये अहम बात नहीं किसने किया पहला कसूर दिन गुजरते हैं तो यूँ घाव भी भर जाते हैं फिर भी रह जाते हैं हर हल में कुछ दाग जरूर वक्त के साथ बदलनी है तो बदले हर बात जो गई बीत उसे कौन बदल पाए हुजुर ....................................................... अरुण कुछ शेर हवा ओ आग पानी और धरती आसमां सारे मै हूँ चौराहा जहाँ से सब गुजरते हैं दुनिया है खेल जिसमें जीता नहीं कोई देखी है हार सब ने अपनी अपनी जंगे जहन का शोर बाहर भी फैलता जंग थम जाए तो बाहर भी सुकून .............................................. अरुण

एक गजल

एक गजल

कुछ साँस ले रहे हैं ज़माने के वास्ते कुछ मेहरबां बने हैं ज़माने से सीखकर जो खुद को देख लेता है गैरों की शक्ल में गैरों को जान देता है अपनी निकालकर जिसके लिए बदन हो किराये का इक मकान उसको न चाहिए कोई चादर मजार पर उस साधू को कौन सराहेगा मेरे यार जिस साधू का मोल न हो राजद्वार पर ...................................................... अरुण

एक गजल

सामनेवाले ने खुद की जब कभी तारीफ की ठेस सी लगती है दिल में खुद को घटता देखकर कायदा कायम हुआ तो कत्ल होने थम गए तलवारे नफरत चल रही हर बार दुश्मन देखकर प्यास को इज्जत मिली प्यासों से दुनिया भर गई हो न हो जतला रहे सब प्यास पानी देखकर 'उनसे' पाकर इक इशारा चल पड़े मंजिल तरफ कुछ तो उनके हो गए आशिक उन्हें ही देखकर अपनी हालत पे बड़ा मै गमजदा ग़मगीन था गम से मै वाकिफ हुआ औरों को रोता देखकर .............................................................. अरुण

कुछ शेर

इस किनारे पर भटकता, उस किनारे जा टिके इतना लम्बा फासला पर आँख खुलते ही कटे खोजनेवालेने क्या कभी पाया खुदा खोजनेवाले से जो ना अलहदा ............................................ अरुण

कुछ शेर

कई अच्छे बुरे सपने, कई अरमान चुप चुप से गुनाहों की दबी सी बू, जहन है ऐसा तहखाना यादों पे धूल यादों की चढ़ती गई शख्सियत अपने आप ढलती गई ........................................ अरुण

कुछ शेर

सांसे भी खुद-ब-खुद, धड़कन भी खुद- ब -खुद आसां सहल था जीना, दुष्वार क्यों हुआ ? दिल में सुकून है, कोई तलब नहीं ये तो दिमाग है कि जिसके कई सवाल नाकाम मुहब्बत की बनती है कहानी होता है मिलन तो चर्चा नहीं होता ................................................... अरुण

कुछ शेर

'गुलाब को काटे न हों- तो कितना बेहतर, ये सोच ही तरक्की-ओ-परेशानी भी उमंग में जनम और विषाद में मौत ये सिलसिला-ए- जिंदगी कबतक आजादी जानी नहीं पर चाही हरदम जिंदगी जी ली पिंजडे बदल बदल कर .............................................. अरुण

कुछ शेर

अपने ही घर में बैठे खिड़की से झांकता हूँ दुनिया ने ध्यान खींचा घर की न सुध रही अँधेरे को हटाता रहा, न हट पाया रात दिन, रौशनी के गीत गाता रहा धुएँ सी शख्सियत मेरी, धुआं ही बटोरता हूँ धुआं कहाँ से चला, पता नहीं .................................................... अरुण

कुछ शेर

दौलत पे मिलकियत का क्योंकर करें गुमान सच तो यही कि दौलत का मै बना गुलाम कोशिश के जोर से तो कुछ भी हुआ हो हासिल सच का तो कोशिशों से कोई न वास्ता ........................................... अरुण