कुछ शेर

असलियत गौर से हट जाए भरम जाए पसर
गौर की वापसी तक, बन्दा बन्दा है पागल

तुलने ओ तौलने की मिली जो तालीम
न किसी बात का भी असली वजन जाना है

रिश्तों के आइनों में, बनते बिगड़ते रूप
यारों से दुश्मनी हो दुश्मन से दोस्ती
................................................... अरुण

Comments

Udan Tashtari said…
सही है...लिखते रहें.

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